हमकौ तुम बिनु सबै सतावत -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग घनाश्री


 
हमकौ तुम बिनु सबै सतावत।
कहियौ मधुप चतुर माधौ सौ, तुमहू सखा कहावत।।
जाकौ तन हरि हेरयौ दीन सुनि, कुल सरनागत दीन्ही।
सोई भारत करवारि धारि कर, हमकौं कानि न कीन्हीं।।
काढ़ि सिंधु तै सिव कर सौंप्यौ, गुनहगार की नाई।
सो ससि प्रगट प्रधान काम कौ, चहु दिसि देत दुहाई।।
अमरनाथ अपराध छमा करि, पीठि ठोकि मुकरायौ।
सो अब इंद्र कोप जलधर लै, ब्रजमंडल पर छायौ।।
पच्छ पुच्छ सिर धारि सिखनि के, इहिं बिधि दई बड़ाई।
तिन अब बोलि छोलि तन डारयौ, उपल खौर की नाई।।
बच्छ चोरि अलि स्वच्छ पच्छ करि, तिनहूँ कोप जनायौ।
परी जो रेख ललाट अधिक सुख, मेटि दुकार बनायौ।।
कौन कौन सौ विनती कीजै, कही जितक कहि आई।
‘सूर’ स्याम अपने या ब्रज की, इहिं विधि कानि घटाई।।3624।।

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