हमकौ सपनेहू मैं सोच ।
जा दिन ते बिछुरे नँदनंदन, ता दिन तै यह पोच ।।
मनु गुपाल आए मेरे गृह, हँसि करि भुजा कही ।
कहा करौ बैरिनि भइ निद्रा, निमिष न और रही ।।
ज्यौ चकई प्रतिबिंब देखि कै, आनदै पिय जानि ।
‘सूर’ पवन मिलि निठुर विधाता, चपल कियौ जल आनि ।। 3268 ।।