हमकौं लाज न तुमहिं कन्हाई।
जौ हम इहिं मारग सब आई, तौ तुम हम सौं करत ढिठाई।।
हा हा करतिं, पाइ तुव लागतिं, रीती मटुकी देहु मँगाई।
काकौ बदन प्रातहीं देख्यौ, घर तैं हम छींकतहु न आई।।
उतहिं जाति हीं सखी सहेली, मैं हीं सबकौं इतहिं फिराई।
सूर स्याम अधमई हमहिं सब, लागै तुमकौं सकल भलाई।।1482।।