हमकौं जागत रैनि बिहानी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


हमकौ जागत रैनि बिहानी ।
कमल नैन, जग जीवन की सखि, गावत अकथ कहानी ।।
बिरह अथाह होत निसि हमकौ, बिनु हरि समुद्र समानी ।
क्यौ करि पावहि बिरहिनि पारहि, बिनु केवट अगवानी ।।
उदित सूर चकई मिलाप, निसि अलि जु मिलै अरविदहिं ।
‘सूर’ हमै दिन राति दुसह दुख, कहा कहै गोविदहिं ।। 3271 ।।

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