हमकौ जागत रैनि बिहानी ।
कमल नैन, जग जीवन की सखि, गावत अकथ कहानी ।।
बिरह अथाह होत निसि हमकौ, बिनु हरि समुद्र समानी ।
क्यौ करि पावहि बिरहिनि पारहि, बिनु केवट अगवानी ।।
उदित सूर चकई मिलाप, निसि अलि जु मिलै अरविदहिं ।
‘सूर’ हमै दिन राति दुसह दुख, कहा कहै गोविदहिं ।। 3271 ।।