हनु, तैं सबको काज सँवारयौ -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग मारू


 
हनु, तैं सबको काज सँवारयौ।
बार-बार अंगद यौं भाषै, मेरौ प्रान उवारयौ।
तुरतहिं गमन कियौ सागर तै, बीचहिं बाग उजारयौ।
कीन्हौं मधुबन चौर चहूँदिसि, माली जाइ पुकारयौ।
धनि हनुमत, सुग्रीव कहत हैं, रावन कौ दल मारयौ।
सूर सुनत रघुनाथ भयौ सुख, काज आपनौ सारयौ॥103॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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