हँसि हँसि गोपी कहतिं परस्पर -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्हरौ


हँसि हँसि गोपी कहतिं परस्पर, प्यारी कौं उर लाइ गए री।
स्याम काम-तनु-आतुरताई, ऐसे स्यामा-बस्य भए री।।
पुनि देखति राधिका-चिह्न-पग, पिय-पग-चिह्न न पावैं।
की पिय कौं प्यारी लीन्हौ, यह कहि भ्रम उपजावैं।।
उहिं गिरिधर उर धरि ज्यौं लीन्हौ, उहि गिरिधर उर लीन्हौ।
सूर भईं आतुर ब्रजनारी पिय-प्यारी-पग चीन्हौ।।1099।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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