हँसत हँसत स्याम प्रबल, कुबलया संहारयौ।
तुरत दंत लिए उपारि, कंधनि पर चले धारि, निरखत नर नारि मुदित चकित गज मारयौ।।
अतिही कोमल अजान, सुनत तृपति जिय सकान, तनु बिनु जनु भयौ प्रान, मल्लनि पै आए।
देखत ही संकि गए, काल गुनि बिहाल भए, कस डरनि घेरि लए, दोउ मन मुसुकाए।।
असुर वीर चहूँ पास, जिनकै बस भू अकास मल्ल करत गाँस नास, ब्रह्म को विचारै।
सबै कहत भिरहु स्याम, सुनत रहत सदा नाम, हारि जीति घरही की, कौन काहि मारै।।
हँसि बोले स्याम राम, कहा सुनत रहे नाम, खेलन को हमहि काम, बालक सँग डोलै।
'सूर' नंद के कुमार, यह है राजस विचार, कहा कहत बार बार, प्रभु ऐसे बोलै।।3064।।