स्याम गरीबनि हूँ के ग्राहक।
दीनानाथ हमारे ठाकुर, साँचे प्रीति-निबाहक।
कहा बिदुर की जाति-पाँति, कुल प्रेम-प्रीति के लाहक।
कह पांडव कैं घर ठकुराई अरजुन के रथ-बाहक।
कहा सुदामा कैं धन हो। तो सत्य-प्रीति के चाहक।
सूरदास सठ, तातै हरि भजि आरत के दुख दाहक।।19।।