स्‍याम गरीबनि हूँ के ग्राहक -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग मलार


            
स्‍याम गरीबनि हूँ के ग्राहक।
दीनानाथ हमारे ठाकुर, साँचे प्रीति-निबाहक।
कहा बिदुर की जाति-पाँति, कुल प्रेम-प्रीति के लाहक।
कह पांडव कैं घर ठकुराई अरजुन के रथ-बाहक।
कहा सुदामा कैं धन हो। तो सत्‍य-प्रीति के चाहक।
सूरदास सठ, तातै हरि भजि आरत के दुख दाहक।।19।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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