स्व-सुख-कल्पनाशून्य सर्वथा -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव स्वरूप माधुरी

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राग बागेश्री - ताल कहरवा


स्व-सुख-कल्पनाशून्य सर्वथा, नित्य एक प्रियतम-सुख-चाव॥
सहज प्रेम-प्रतिमा, पर निज में नित्य प्रेमशून्यता-जान।
आत्मनिवेदनमयता, पर है नहीं समर्पण-स्मृति-‌अभिमान॥
सखी-सहचरी-प्रेमविवशता, सबमें गुण-महिमाका भान।
सबके सुखमें सुखी सदा निज सुखका सहज त्याग निर्मान॥
सौत-प्रियता-सेवा सुखमय प्रियतम-सुख-सपादन-जन्य।
प्रियतम-वशीकरण गुणगणमय, परम त्यागमय जीवन धन्य॥
रति, स्नेह अति, प्रणय, मान शुचि, पचम राग तथा अनुराग।
सप्तम दुर्लभ भाव, प्रेम अष्टम अति महाभाव युत त्याग॥
आठोंसे सपन्न, इन्हीं की अगली शुभ परिणति से युक्त।
प्रियतम-महिषी-प्रेयसिगण में प्रमुख सर्व-‌अर्पण-संयुक्त॥
प्रेम-विवशता मधुर, नित्य अभिसार-प्रियता, प्रिय-स्मृति-लीन।
नवनिकुजवासिनि, मधुभाषिणि, परमैश्वर्यमयी, शुचि दीन॥
ममतामयी मधुकरी करती प्रिय-पद-कञ्ज मधुर-रस-पान।
'मैं अभिन्न प्रियतमा श्याम की'-एक अनन्य अहं का भान॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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