स्याम सैन दै सखी बुलाई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग सूही


स्याम सैन दै सखी बुलाई।
यह कहि चली जाउँ गृह अपनै, तू तौ मान कियौ री माई।।
अंतर जाइ भए हरि ठाढे, सखी सहज निकसी तहँ जाई।
मुख निरखत दोउ हँसे परस्पर, भवन जाहु मैं लेउँ मनाई।।
अंग दिखाइ गई हँसि प्यारी, सुरत चिह्न नीकी सुघराई।
सूरज-प्रभु-गुन-पार लहै को, जानि बूझि कीन्ही रिसहाई।।2718।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः