पुनि गोपी जुरि मिलि सब आई। तिन हित साथ अरीरा सुनाई ।।
हरि सुधि करि सुधि बुधि बिसराई। तिनकौ प्रेम कह्यौ नहिं जाई ।।
कोउ कह हरि ब्याही बहु नार। तिनकौ बढ्यौ बहुत परिवार ।।
उनकौ यह हम देति असीस। सुख सो जीवै कोटि बसीस ।।
कोउ कहे हरि नाही हम चीन्हौ। बिनु चीन्हे उनकौ मन दीन्हौ ।।
निसि दिन रोवत हमैं बिहाइ। कहा करै अब कहा उपाई ।।
कोउ कहै इहाँ चरावत गाइ। राजा भए द्वारिका जाइ ।।
काहे कौ वै आवै इहाँ। भोग बिलास करत नित उहाँ ।।
कोऊ कहै हरि रिपु छे किए। अरु मित्रनि कौ बहु सुख दिए ।।
बिरह हमारौ कहै रहि गयौ। जिन हमकौं अति ही दुख दयौ ।।
कोउ कहै जे हरि की रानी। कौन भाँति हरि कौ पतियानी ।।