स्याम भुजनि की सुन्दरताई।
चंदन खौरि अनूपम राजति, सो छबि कही न जाई।
बड़े बिसाल जानु लौं परसत, इक उपमा मन आई।
मनौ भुजंग गगन तैं उतरन, अधमुख रह्यौ झुलाई।
रत्न-जटित पहुँची कर राजति, अँगुरी सुंदर भारी।
सूर मनौ फनि-सिर मनि सोभित, फन-फन की छबि न्यारी।।641।।