स्याम बलराम कौ सदा ध्याऊँ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मारू



स्याम बलराम कौ सदा ध्याऊँ।
यहै मम ज्ञान यह ध्यान सुमिरन यहै, यहै असनान फल यहै पाऊँ।।
स्याम दतवक्र अरु साल्व कौ जीति करि, करत आनद निजपुरा आए।
रामगगादि जमुनादि अस्नान करि, नैमिसारण्य पुनि जाइ न्हाए।।
सूत तहँ कथा भागवत की कहत हे, रिषि अठासी सहस हुते स्रोता।
राम कौ देखि सनमान सबही कियौ, सूत नहि उठे निज जानि वक्ता।।
राम तिहिं हत्यौ तब सब रिषिन मिलि कह्यौ, बिप्र हत्या तुम्है लगी भाई।
सूत सुत थापि सब तीर्थ अस्नान करि, पाप जो भयौ सो सब नसाई।।
पुनि कह्यौ रिषिन दानव महा प्रबल ह्यौ, हमैं दुख देत सो सदा आई।
ताहि जौ हतौ तौ होइ कल्यान तुव, हम करै जज्ञ सुख सौ सदाई।।
राम दिन कितक ता ठौर औरौ रहे, आइ बल्वल तहाँ दई दिखाई।
रुधिर और माँस की लग्यौ बरषा करन, रिषि सकल यह देखि गए डराई।।
राम हल सौ पकरि मुसल सौ हत्यौ तेहि, प्रान तजि तेहिं सकल सुधि बिसारी।
सुरनि आकास तै पुहुप बरषा करी, रिषिन आसीस जय धुनि उचारी।।
बहुरि बलराम परनाम करि रिषिन कौ, पृथी परदच्छिना कौ सिधाए।
प्रभु रचि ज्यौहि ज्यौं होइ सो त्यौहि त्यौ, ‘सूर’ जन हरि चरित कहि सुनाए।। 4223 ।।

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