स्याम गुनरासि मानिनी मनाई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गुंड मलार


स्याम गुनरासि मानिनी मनाई।
रह्यौ रस परस्पर मिट्यौ तनु-बिहर-झर भरयौ आनंद तिय उर न माई।।
कबहुँ रति सहज, कबहूँ करत बिपरीत, बासरहि तै सबै रैनि बीती।
स्रमित दोउ अँग भए, अतिहिं विह्वल परे सेज रतिपति जीति बढ़ी प्रीती।।
भोर भए चले निजु सदन पितु मातु कै, फिरे सकुचे देखि नंद द्वारै।
'सूर' प्रभु स्याम गए सकुचि प्रमुदाधाम, कहति ये गुन भले हरि तुम्हारे।।2703।।

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