स्याम कर मुरली अतिहिं बिराजति -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग नट



स्याम कर मुरली अतिहिं बिराजति।
परसति अधर सुधारस बरसति, मधुर मधुर सुर बाजति।
लटकत मुकुट, भौंह-छबि मटकति, नैन-सैन अति राजति।
ग्रीव नवाइ अटकि बंसी पर कोटि मदन-छबि लाजति।
लोल कपोल झलक कुंडल की, यह उपमा कछु लागत।
मानहुँ मकर सुधारस क्रीड़त, आपु-आपु अनुरागत।
बृंदाबन बिहरत नँद-नंदन, ग्वाल सखा सँग सोहत।
सूरदास प्रभु की छबि निरखत, सुर-नर-मुनि सब मोहत।।645।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः