स्यामा स्याम अंकम भरी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राम रामकली


स्यामा स्याम अंकम भरी।
उरज उर परसाइ, भुज-भुज जोरि गाढ़ै धरी।।
तुरत मन सुख मानि लीन्हौ, नारि तिहि रंग ढरी।
परस्पर ढोउ करत क्रीड़ा, राधिका नव हरी ।।
ऐसे हीं सुख दियौ मोहन, सबै आनँद भरी।
करत रंग हिलोर जमुना, प्रेम आनँद झरी।।
रास-निसि-स्रम दूरि कीन्हौ, धन्य धनि यह घरी।
सुर-प्रभु तट निकसि आए, नारि संग सब खरी।।1167।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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