स्याम! तुम परम निठुर हम -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग भूपाली - तीन ताल


स्याम! तुम परम निठुर हम जाने।
कबहुँ न सुरति करत प्रेमिन की, करत करम मन-माने॥
हौं ब्रज जाय देखि आयौ निज आँखिन सब करतूत।
चित चुराय तजि आ‌ए रोवत-बिलपत, ऐसे धूत॥
ब्रज-जुबतिन कै दे क्यौ मैंने स्रवत नयन नित नीर।
छिनहूँ भूलि न सकौं लाड़िली कौ अति छीन सरीर
जो तुम्हरे जिय नैक प्रेम है, जो उर करुना-लेस।
तौ ब्रज जाय, मिलौ उन सौं पुनि, तजि यह माथुर भेस॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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