सो सुख नंद भाग्य तैं पायौ।
जो मुख ब्रह्मादिक कौं नाहीं, सोई जसुमति गोद खिलायौ।।
सोइ सुख सुरभि बच्छ बृंदाबन, सोइ सुख ग्वालनि टेरि बुलायौ।
सोइ सुख जमुना-कूल -कदंब चढ़ि, कोप कियौ काली गहि ल्यायौ।।
सुखही सुख डोलत कुंजनि मैं, सब-सुख-निधि बन तैं ब्रज आयौ।
सूरदास-प्रभु सुख-सागर अति, सोइ सुख सेस सहस मुख गायौ।।1209।।