सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग धनाश्री
अपने अद्भुत यश का विस्तार करने के लिये (श्रीहरि का) मुझ-जैसे (अधम) सेवकों पर बहुत प्रेम है; क्योंकि कोई भी (भगवान् को) भक्त-पावन कभी नहीं कहता, पतित-पावन कह कर ही सब उनका स्मरण करते हैं। जय और विजय (-को अपने धाम भेजने) -की तो कोई कथा विख्यात है नहीं (कि वे कौन थे और कैसे भगवान् के पार्षद बने), किंतु रावण के वध का विस्तृत वर्णन मिलता है। (सब जानते हैं कि भगवान् राम ने रावण को मार कर अपने धाम भेज दिया।) यद्यपि उसने जगज्जननी जानकी का हरण किया था, फिर भी उस (-के उद्धार) -की कथा सुन कर सभी (भव सागर से) पार हो जाते हैं भगवान् विष्णु (सहस्र फणों वाले) शेषनाग के ऊपर सोते हैं, इसमें उनकी उतनी महत्ता नहीं है, जो पूर्णता उन्हें तब प्राप्त हुई, जब उन्होंने पूतना के स्तनों में लगे विष को पी कर उसे परम पद दिया। (श्री कृष्ण चन्द्र के प्रभाव से) शरशय्या पर पड़े हुए भीष्म पितामह (घोर पीड़ा से रहित होकर) धर्मोपदेश करने लगे, इसमें उतने संतोष (आश्वासन) की प्राप्ति नहीं होती, जितना कि पुत्र के बहाने आतुर-भाव से भगवन्नाम का स्मरण करके अजामिल का उद्धार हो गया, इस बात से भगवन्नाम की निर्दोषता (परम पावनता) प्रकट होती हैं (हे प्रभु!) धर्म-कर्म करने वाले, अधिकारी (पुण्यात्मा) लोगों से तो आपका कोई काम है नहीं (वे तो अपने कर्मों से ही उद्धार पा जाते हैं )। आप तो पृथ्वी का भार दूर करने (पापीलोग जो पृथ्वी के भार रूप हैं, उनका उद्धार करने) के लिये प्रकट होते (अवतार लेते) हैं, यही बात संतों का समाज गान करता (कहता) है। आपकी इसी बात के लिये ख्याति है कि आप सबका भार दूर करते हैं, तब आप मेरा भार भी क्यों नहीं उतार देते। इस सूरदास का सत्कार कर देने (इसे अपना लेने) से आपका (महत्त्व) कुछ घट नहीं जायगा। |
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पृष्ठ संख्या |