सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल
श्रीहरि के अतिरिक्त तेरा उस दिन कौन भला करने वाला था? अरे कृपण! उस दिन का स्मरण करके उन श्रीहरि को ही चित्त में ले आ, जब अत्यन्त कठिन कर्म (प्रारब्ध) ने पकड़कर तुझे रक्त में लथपथ करके (माता के) पेट में रखा था और तू अत्यन्त दुःख सह रहा था- जहाँ कोई जा नहीं सकता था, अत्यन्त असह्य एवं दारुण (कष्टदायी) अन्धकार था, सब प्रकार की प्रतिकूलता थी। अरे मलकी खानि (पापरूप) दुष्ट! अपने मन में सोच तो सही कि कोई भी बुद्धि, बल या कुलीनता से तुझे वहाँ से निकाल नहीं सकता था। (ऐसी दशा में) तू किसकी शपथ करके (किससे प्रतिज्ञा करके) उत्पन्न हुआ। वैसी आपत्ति से तेरी रक्षा की, तुझे संतुष्ट किया, तेरा पोषण किया, तुझे प्राण दिये तथा मुख, नाक, नेत्र, कर्ण, चरण और हाथ दिये। अरे कृतघ्न! सुन, तेरा रात-दिन का अपना (सच्चा) मित्र कौन है, जिसे तू भूल गया है और अब उसे बिना पहचान का (जैसे कभी की जान-पहचान हो ही नहीं, ऐसा) कर दिया है। (किंतु) वह तो अब भी तुझे अपना प्रिय-जन जानकर तेरे साथ रहता है, सबसे पहले तेरी लज्जा रखता है, सदा तेरा मंगल चाहता है। सूरदास जी कहते हैं- अरे शठ! सुन, व्यर्थ हठ और कपट मत कर! उसे अपने भीतर रहने वाला ईश्वर जान और उसी को अपना सुहृद् (अकारण हितैषी) समझ। |
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