सूरदास त्यौं ही कहि गायौ4 -सूरदास

सूरसागर

षष्ठ स्कन्ध

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राग बिलावल
श्रीगुरु-महिमा


पटरानी कौ सो नृप दियौ। जिन प्रनाम करि भोजन कियौ।
रिषि-जाचकनि तै तिन सुत जायो। सुत लहि दंपति अति सुख पायौ।
बिप्र जाचकनि दीन्हौ दान। कियौ उत्सव, कहा करौ बखान।
ता रानी सौ नृप-हित भयौ। और तियनि कौ मन अति तयौ।
तिन सवहिनि मिलि मंत्र उपायो। नृपति-कुँवर कौ जहर पियायौ ।
बहुत बार भई, कुँवर न जाग्यौ। दासी सौ रानी तब माँग्यौ।
ल्याऊ कुँवर कौ बेगि जगाइ। दूध प्याइ कै बहुरि सुवाइ।
दासी कुँवर जगावन आई। देख्यौं कुँवर मृतक की नाई।
दासी बालक सृतक निहारि। परी धरनि पर खइ पछारि।
रानी तब तहँ आई धाइ। सुम मृत देखि परी मुरझाइ।
पुनि रानी जब सुरति सँभारी। रुदन करन लागी अति भारी।
रुदन सुनत राजा हेँ आयौ। देखि कुँवर कौं अति दुख पायौ।
कबहूँ मुरछित ह्वै नृप परे। कबहुंक सुत कौं अंकम भरै।
रिषि नारद, अँगिरा तहँ आए। राजा सौं वे वचन सुनाए।
को तू, को, यह, देखि विचार। स्वप्न-स्वरूप सकल संसार।
सोयो होइ सो इहि सत मानै। जो जागै सो मिथ्या जानै।
तातै मिथ्या-मोह बिसारि। श्रीभगवान-चरन उर धारि ।
हम तुम सौं पहिलैं ही कही। नृप सो बात आज भइ सही।
नृप कौ सुनि उपज्यौ बैराग। वन कौ गयौ राज सब त्याग।
बन मैं जाइ तपस्या करी। मरि गंधवँ-देह तिन धरी।
इक दिन सो कैलास सिघयौ। सिव कौ दरसन तहँ तिहिं पायौ।
उमा नगन देखी तिहिं राइ। उन दियौ साप ताहि या भाइ।
तू अब असुर-देह धरि जाइ। मेरो कह्मों न मिथ्या आइ।
उमा साप ताकौं जब दयौ। वृत्रासुर सो या विधि भयौ।
हरि की भक्ति वृथा नहिं जाइ।जन्म जन्म सो प्रकटे आइ।
तातैं हरि-गुरु-सेवा कीजै। मेरौ वचन मानि यह लीजै।
ज्यौ सुक नुप सौं कहि समुझायौ। सूरदास त्यौं ही कहि गायौ।।5।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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