सुला दिया शिशु को धीरे से, तुरत यशोदा जी के पास।
खोये निधि ज्यों, ले कन्या को, चले उदास, भरे उल्लास॥
पहुँचे कारागृह तुरंत ही, हुए बंद उस के सब द्वार।
शिशु-रोदन सुन जागे प्रहरी, पहुँचा एक कंस-दरबार॥
सुनते ही दौड़ा पागल-सा कंस उसी क्षण, ले तलवार।
पहुँचा, छीन लिया कन्या को, भर मन में आश्चर्य अपार॥
कन्या कैसे हुई, न समझा मर्म, पकड़ कन्या का हाथ।
दिया पछाड़ शिला पर पापी ने अति निर्दयता के साथ॥
रोती रही देवकी, कन्या उड़ी, गयी नभ बिना प्रयास।
अष्ट भुजा आयुधयुत देवी बोली, देकर उसको त्रास॥
‘मूर्ख! हो चुका है पैदा वह, तुझे मारने वाला वीर।
मुझे मारकर क्या होगा, मत मार बालकों को, धर धीर’॥
इधर बह चला नन्दालय में परमानन्द-स्रोत निस्सीम।
करने लगे सभी अवगाहन मा, छोड़ मर्यादा-सीम॥
फिर तो लीला चली रसमयी परम सुदुर्लभ, परम पुनीत।
मूर्तिमान हो चला सत्य-वात्सल्य-मधुर रस का संगीत॥