सुरपति चरन परयौ गहि धाइ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राम मलार


सुरपति चरन परयौ गहि धाइ।
जुग-गुन धोइ सेष-गुन जान्यौ, आयौ सरन राखि सरनाइ।।
तुम बिसरे तुम्हरी ही माया, तुम बिनु नाहीं और सहाइ।
सरन-सरन पुनि-पुनि कहि-कहि मोहिं, राखि-राखि त्रिभुवन के राइ।।
मोतै चूक परी बिनु जानैं मैं कीन्हे अपराध बनाइ।
तुम माता तुमहीं जग धाता, तुम भ्राता अपराध छमाइ।।
जौ बालक जननी सौं बिरुझै, माता ताकौं लेइ मनाइ।
ऐसेहिं मोहिं करौ करुनामय, सूर स्याम ज्यौं सुत-हित माइ।।977।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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