सुरगन चढ़ि बिमान नभ देखत।
ललना सहित सुमन गन बरसत, धन्यं जन्म-ब्रज लेखत।।
धनि ब्रज-लोग, धन्य व्रज-बाला, बिहरत रास गुपाल।
धनि बंसीवट, धनि जमुना-तट, धनि धनि लता-तमाल।।
सब तै धन्य धन्य वृंदाबन, जहाँ कृष्न कौ बास।
धनि-धनि सूरदास के स्वामी, अद्भुत राच्यौ रास।।1044।।