सुभट साल्व करि क्रोध हरि पुरी आयौ2 -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मारू
शाल्ववध



अगिनि कबहुँ कबहुँ बारि बरषा करै, प्रद्युम्न सकल माया निवारी।
साल्व परधान द्यौमान मारी गदा, प्रद्युम्न मुरछित सुधि बिसारी।।
धर्मवित सारथी गयौ एकांत लै, उहाँ जब चेत ह्वै सुधि सँभारी।
खीझि कह्यौ ताहि क्यौ मोहिं लायौ इहाँ, मम पिता मातु कौ लगी गारी।।
है कहा कहि मोहिं राम भगवान सुनि, नारि मम सुनत अति दुखित होई।
मरै रन सुजस परलोक सुख पाइये, मंद मति तै दोउ बात खोई।।
धर्मवित कह्यौ करि विनय मम चूक नहिं, सारथी धर्म मोहिं गुरु सिखायौ।
मुरछित सुभट नहिं राखियै खेत मैं, जानि यह बात मैं इहाँ ल्यायौ।।
प्रद्युम्न कह्यौ जो भई सो भई अब, बात जनि काहु सौ यह सुनैयै।
ताहि दै सपथ, करि आचमन पुनि कह्यौ, चलो रनभूमि अब जैयै।।
आइ रनभूमि मैं सबनि धीरज दियौ, साल्व रथतुरंग चारो सँहारे।
छत्र धुज तोरि मारयौ बहुरि सारथी, देखि यह सुभट डरि गए सारे।।
हस्तिनापुर गए हुते हरि पांडु गृह, तहाँ ते चले यह बात जानी।
साल्व उत्पात कियौ द्वारिका माहिं बहु, हाँकि रथ कह्यौ सारंगपानी।।

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