सुन कृष्ण की करुण प्रार्थना, वसन-रूप बन रक्खी लाज।
थक बैठा दुःशासन लज्जित, चकित रह गया सभी समाज॥
मथुरा-द्वारवती में प्रभु ने बरसाया आनन्द अपार-
मधुर परम ऐश्वर्यमयी शुचि लीलाओं का कर विस्तार॥
रणक्षेत्र में सखा पार्थ का मोह मिटाया, दे निज ज्ञान।
सहज शरण दे, किया धन्य फिर देकर दिव्य प्रेम का दान॥
अर्जुन के मिस अखिल विश्व को दिया दिव्य पावन उपदेश।
उद्धव को फिर दिया विशद कल्याणपूर्ण अपना संदेश॥
ज्ञान, योग, वैराग्य, प्रेम, रति, सकल कामनारहित सुकर्म।
संयम, त्याग, संन्यास, वर्ण-आश्रम, शुचि मानव के सब धर्म॥
इह-परलोक, पिता-सुत, पति-पत्नी, गुरु-शिष्य, धर्म-आचार।
गो-ब्राह्मण, अबला-अनाथ हित प्राणार्पण, मंगल व्यापार॥
सभी दिशाओं में नित देता जन-जन को उज्ज्वलतम ज्ञान।
हरता दुःख-शोक-भय-तम सब, करता सुख-कल्याण-विधान॥
पात्रापात्र-भेद कर विस्मृत, करता सदा सभी का त्राण।
सभी देश, सब काल सभी का करता सदा परम कल्याण॥