”सुनि राजा दुर्जोधन, हम तुम पैं आए।
”पांडव-सुत जीवत मिले, दै कुसल पठाए।
”छेम-कुसल अरु दीनता, दंडवत सुनाई।
”कर जोरे बिनती करी, दुरबल-सुखदाई।
”पाँच गाउँ पाँचौ जननि, किरपा करि दीजे।
”ये तुम्हरे कुल-बंस हैं हमरी सुनि लीजै।“
”उनकी मोसौं दीनता, कोउ कहि न सुनावौ।
”पांडव-सुत अरु द्रौपदी कौं मारि गड़ावौ।
”राजनीति जानौ नहीं, गो-सुत चरवारे।
”पीवौ छाँछ अघाइ कै, कब के रयवारे।“
”गाइ-गाउँ के वत्सला मेरे आदि सहाई।
”इनकी लज्जा नहिं हमैं, तुम राज बड़ाई।“
भीषम-द्रोन-करन सुनै, कोउ मुखहु न बोलैं।
ये पांडव क्यों गाड़िऐ, धरनी-धर डोल।
हम कछु लेन न देन मैं, ये वीर तिहारे।
सूरदास प्रभु उठि चले, कौरव-सुत हारे।।238।।