सुनि-सुनि ऊधौ आवति हाँसी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्हरौ


 
सुनि-सुनि ऊधौ आवति हाँसी।
कहँ वै ब्रह्मादिक के ठाकुर, कहाँ कस को दासी।।
इद्रादिक की कौन चलावै, संकर करत खवासी।
निगम आदि बंदीजन जाके, सेष सीस के बासी।।
जाकै रमा रहति चरननि तर, कौन गनै कुबिजा सी।
'सूरदास' प्रभु दृढ़ करि बाँधे, प्रेम पुंज की पासी।।3643।।

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