सुनहु सखी राधा सरि को है।
जो हरि है रतिपति मनमोहन, याकौ मुख सो जोहै।।
जैसी स्याम नारि यह तैसी, सुंदर जोरी सोहै।
यह द्वादस बहुऊ दम द्वै कौ, ब्रजजुवतिनि मन मोहै।।
मैं इनकौ घटि बढि नहिं जानति, भेद करै सो को है।
'सूर' स्याम नागर, यह नागरि, एक प्रान तन दो है।।1903।।