सुनत हँसि चले हरि सकुच भारी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कल्यान


सुनत हँसि चले हरि सकुच भारी।
यह कह्यौ आजु हम आइहै गेह तुव, तरकि जनि कहौ हम समुझि डारी।।
नारि आनंद भरी, राँग सी ह्वै ढरी, द्वार अपनै खरी, प्रेम पुलकी।
गए कहि 'सूर' प्रभु रैनि बसिहै आजु, सजति श्रृंगार कछु सकुच कुलकी।।2705।।

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