सुंदरि एक दह्यौ लिये ठाढी देखी नद दुवारि।
बढी प्रीति ललना गिरिधर सौ गुरुजन सबहि बिसारि।।
मोतियनि माँग भरी सखियनि सँग वेदी दिपति लिलार।
करनफूल खुठिला अति राजत मदन जोबन कै भार।।
नैननि कज्जल नासिका बेसरि मुख तमोर अति राज।
ढार सुढार बन्यौ जाकौ मोती रहत अधर मुख छाज।।
कटि लहँगा पहुँची बँद अँगिया फुदना बहु बिधि सोहै।
रतन जराव जरी जाकी जेहरि हस चाल गति मोहै।।
कंचन कलस भराइ जमुन जल मोतियनि चौक पुराए।
मनु द्वै छौना हंसनि के से चुगन सरोवर आए।।
तौ कहावत हौ नँदनंदन सारँग बुधि है थोरी।
'सूरदास' प्रभु नंदलला की बनी है छबीली जोरी।।