साँवरौ साँवरी रैनि कौ जायौ।
आधी राति कंस के त्रासनि, बसुद्यौ गोकुल ल्यायौ।।
नंद पिता अरु मातु जसोदा, माखन नहीं खवायौ।
हाथ लकुट कामरि काँधे पर, बछरुन साथ डुलायौ।।
कहा भयौ मधुपुरी अवतरे, गोपीनाथ कहायौ।
ब्रज बधुअनि मिलि साँट कटीली, कवि ज्यौ नाच नचायौ।।
अब लौ कहाँ रहे हो ऊधौ, लिखि लिखि जोग पठायौ।
'सूरदास' हम यहै परेखौ, कुबरी हाथ बिकायौ।।3651।।