साँवरौ मनमोहन माई।
देखि सखी बन तैं ब्रज आवत, सुंदर नंद-कुमार कन्हाई।।
मोर-पंख सिर मुकुट बिराजत, मुख मुरली-धुनि सुभग सुहाई।
कुंडल लोल, कपोलनि की छबि, मधुरी बोलनि बरनि न जाई।
लोचन ललित, ललाट भृकुटि बिच तकि मृगमद की रेख बनाई।
मनु मरजाद उलंघि अधिक बल उमँगि चली अति सुंदरताई।
कुंचित केस सुदेस, कमल पर मनु मधुपनि-माला पहिराई।
मंद-मंद मुसुक्यानि, मनौ धन, दामिनि दुरि-दुरि देति दिखाई।
सोभित सूर निकट नासा के अनुपम अधरनि की अरुनाई।
मनु सुक सुरँग बिलोकि बिंब-फल चाखन कारन चोंच चलाई।।616।।