रूप गोस्वामी (जन्म: 1489 ई. - मृत्यु: 1564 ई.), वृन्दावन में चैतन्य महाप्रभु द्वारा भेजे गए षड् गोस्वामियों में से एक थे। वे कवि, गुरु और दार्शनिक थे। वे सनातन गोस्वामी के भाई थे। इनका जन्म 1489 ई. (तदनुसार 1415 शक संवत) को हुआ था। इन्होंने 22 वर्ष की आयु में गृहस्थाश्रम त्याग कर दिया था। बाद के 51 वर्ष ये ब्रज में ही रहे। इन्होंने श्री सनातन गोस्वामी से दीक्षा ली थी। इन्हें शुद्ध भक्ति सेवा में महारत प्राप्त थी, अतएव इन्हें भक्ति-रसाचार्य कहा जाता है। ये गौरांग के अति प्रेमी थे। ये अपने अग्रज श्री सनातन गोस्वामी सहित नवाब हुसैन शाह के दरबार के उच्च पदों का त्याग कर गौरांग के भक्ति संकीर्तन में हो लिए थे। इन्हीं के द्वारा चैतन्य ने अपनी भक्ति-शिक्षा तथा सभी ग्रन्थों के आवश्यक सार का प्रचार-प्रसार किया। चैतन्य महाप्रभु के भक्तों में से इन दोनों भाइयों को उनका प्रधान कहा जाता था। सन 1564 ई. को 75 वर्ष की आयु में इन्होंने परम धाम को प्रस्थान किया। श्री रूप गोस्वामी समस्त गोस्वामियों के नायक थे। जिस प्रकार चैतन्य महाप्रभु अपने पीछे 'शिक्षाष्टक' नामक आठ श्लोक छोड़ गये थे, उसी प्रकार श्री रूप गोस्वामी ने भी 'श्रीउपदेशामृत' प्रदान किया, जिससे मनुष्य शुद्ध भक्त बन सकें। ...और पढ़ें