ध्रुपद भारत की समृद्ध गायन शैली है। ध्रुपद का शब्दश: अर्थ होता है- 'ध्रुव+पद' अर्थात- जिसके नियम निश्चित हों, अटल हों, जो नियमों में बंधा हुआ हो। ध्रुपद गंभीर प्रकृति का गीत है। इसे गाने में कण्ठ और फेफड़े पर बल पड़ता है। इसलिये लोग इसे 'मर्दाना गीत' कहते हैं। 'नाट्यशास्त्र' के अनुसार वर्ण, अलंकार, गान-क्रिया, यति, वाणी, लय आदि जहाँ ध्रुव रूप में परस्पर संबद्ध रहें, उन गीतों को 'ध्रुवा' कहा गया है। जिन पदों में उक्त नियम का निर्वाह हो रहा हो, उन्हें 'ध्रुवपद' अथवा 'ध्रुपद' कहा जाता है। शास्त्रीय संगीत के पद, ख़याल, ध्रुपद आदि का जन्म ब्रजभूमि में होने के कारण इन सबकी भाषा ब्रज है और ध्रुपद का विषय समग्र रूप से ब्रज का रास ही है। ...और पढ़ें
धमार एक विशेष गायन शैली है, जिसकी उत्पत्ति में ब्रज का बहुत महत्त्व है। होरी गायन का प्रचलन ब्रज के क्षेत्र में लोक-गीत के रूप में बहुत काल से चला आता है। इस लोकगीत में वर्ण्य-विषय राधा-कृष्ण के होली खेलने का रहता था। रस शृंगार था और भाषा थी ब्रज। ग्रामों के उन्मुक्त वातावरण में द्रुत गति के दीपचंदी, धुमाली और कभी अद्धा जैसी ताल में युवक-युवतियों, प्रौढ़ और वृद्धों, सभी के द्वारा यह लोकगीत गाए और नाचे जाते थे। ब्रज के संपूर्ण क्षेत्र में रसिया और होली जन-जन में व्याप्त है। लोक संगीत ही परिष्कृत होकर शास्त्रीय नियमों में बंध जाता है, तब शास्त्रीय संगीत कहलाता है। देशी गान, भाषा गान, धमार गान, ठुमरी आदि इसके उदाहरण हैं। ...और पढ़ें
समाज गायन में दर्जनभर और उससे अधिक लोग भाग लेते हैं। प्रमुख गायक को 'मुखिया' कहा जाता है जबकि उसका अनुसरण करने वाले 'सेला' कहलाते हैं। गायन के समय आसपास बैठे भक्तों का समूह समाज शब्द से जाना जाता है। प्राचीन मंदिरों में उनके अलग-अलग 'समाजी' अर्थात 'समाज गायन करने वाले' होते हैं। बरसाना में लट्ठमार होली के अवसर पर कान्हा के घर नन्दगाँव से उनके सखा स्वरूप आते हैं। बरसानावासी राधा जी के पक्ष वाले 'समाज गायन' में भक्तिरस के साथ चुनौती पूर्ण पंक्तियां प्रस्तुत करके विपक्ष को मुक़ाबले के लिए ललकारते हैं। ...और पढ़ें
रसिया ब्रज की प्राचीनतम गायकी कला है। भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का प्रस्तुतीकरण रासलीला तथा रसिया गायन के माध्यम से किया जाता है। प्रसिद्ध त्योहार 'होली' ब्रज में बिना रसिया गीतों के अधूरा-सा लगता है। होली पर कई प्रसिद्ध रसिया गीतों की रचना हुई है। भारत में वसंत ऋतु का बड़ा ही महत्त्व है। मानवीय प्रेम के प्रतीक बसंत पंचमी और होली आदि के प्रसिद्ध उत्सव इसी ऋतु में मनाये जाते हैं। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण की विभिन्न प्रेम लीलाओं का संगीतमय वर्णन इस समय किये जाने की परम्परा रही है। इसी परंपरा का एक प्राचीन प्रतीक है- 'रसिया गायन'। रसिया मुख्य रूप से ब्रजभाषा में गाया जाता है। ...और पढ़ें