सहज गीता -रामसुखदास पृ. 68

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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बारहवाँ अध्याय

(भक्ति योग)

[इस प्रकार भगवान् ने यहाँ मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए चार साधन बताये हैं- (1) समर्पणयोग, (2) अभ्यासयोग, (3) भगवदर्थकर्म और (4) कर्मफल त्याग। साधक अपनी रुचि, विश्वास तथा योग्यता के अनुसार कोई भी एक साधन करके अपना कल्याण कर सकता है। अब भगवान् इन चारों साधनों से सिद्ध हुए भक्तों के लक्षणों का वर्णन पाँच प्रकरणों में करते हैं-]
(पहला प्रकरण-) संपूर्ण प्राणियों में मुझे देखने वाले मेरे भक्त का किसी भी प्राणी से द्वेषभाव नहीं होता। इतना ही नहीं, उसका संपूर्ण प्राणियों के साथ मित्रता और दयालुता का भाव होता है। वह ममता और अहंकार से रहित, सुख-दुख की प्राप्ति में सम और क्षमाशील होता है। वह हरेक परिस्थिति में निरंतर संतुष्ट रहता है। उसे नित्य-निरंतर मेरे संबंध का अनुभव होता है। शरीर-इंद्रियाँ-मन बुद्धि स्वाभाविक ही उसके वश में रहते हैं। उसका एक मुझ में ही दृढ़ निश्चय होता है। उसके मन बुद्धि मेरे ही अर्पित रहते हैं। ऐसा भक्त मुझे प्रिय है।
(दूसरा प्रकरण-) मेरे भक्त से किसी भी प्राणी को उद्वेग (क्षोभ, हलचल) नहीं होता तथा उसे स्वयं भी किसी प्राणी से उद्वेग नहीं होता। वह हर्ष, ईर्ष्या, भय, उद्वेग आदि विकारों से सर्वथा रहित होता है; क्योंकि उसकी दृष्टि में एक मेरे सिवाय दूसरी कोई सत्ता है ही नहीं, फिर वह किससे उद्वेग, ईर्ष्या, भय आदि करे और क्यों करे? ऐसा भक्त मुझे प्रिय है।
(तीसरा प्रकरण-) जो अपने लिए किसी भी वस्तु, व्यक्ति आदि की आवश्यकता नहीं रखता, जो शरीर तथा अंतःकरण से पवित्र रहता है, जिसने करने योग्य काम (भगवत्प्राप्ति) कर लिया है, जो हरेक परिस्थिति में उदासीन अर्थात् निर्लिप्त रहता है, जिसके हृदय में दुख-चिंता-शोकरूप हलचल नहीं होती और जो भोग तथा संग्रह के उद्देश्य से कभी कोई नया कर्म आरंभ नहीं करता, वह भक्त मुझे प्रिय है।

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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

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