सहज गीता -रामसुखदास पृ. 66

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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ग्यारहवाँ अध्याय

(विश्वरुपदर्शन योग)

श्रीभगवान् बोले- हे अर्जुन! तुम भयभीत मत होओ; क्योंकि मैंने प्रसन्न होकर ही अपनी सामर्थ्य से तुम्हें यह अत्यंत श्रेष्ठ, तेजस्वरूप, सबका आदि और अनन्त विश्वरूप दिखाया है। इस प्रकार के विश्वरूप को तुम्हारे सिवाय पहले किसी ने नहीं देखा है। हे कुलश्रेष्ठ! मनुष्यलोक में इस प्रकार के विश्वरूप को कोई वेदों तथा शास्त्रों के अध्ययन से, यज्ञ से, दान से, उग्र तपस्या से और बड़ी-बड़ी क्रियाओं से भी नहीं देख सकता। इसे तो तुम जैसा कृपापात्र ही हमे कृपा से देख सकता है। मेरा ऐसा उग्ररूप देखकर तुम्हें भयभीत नहीं होना चाहिए तथा मोहित भी नहीं होना चाहिए। अब तुम निर्भय तथा प्रसन्न मनवाले होकर मेरे उसी चतुर्भुज रूप को भलीभाँति देखो।
संजय बोले- ऐसा कहकर भगवान् वासुदेव ने पहले अर्जुन को अपना चतुर्भुज रूप दिखाया। फिर अर्जुन की प्रसन्नता के लिए महात्मा भगवान् श्रीकृष्ण ने पुनः अपना द्विभुज मनुष्यरूप धारण कर लिया और भयभीत अर्जुन को आश्वासन दिया।
अर्जुन बोले- हो जनार्दन! आपके इस सौम्य मनुष्यरूप को देखकर मेरा चित्त स्थिर हो गया है और मैं अपनी स्वाभाविक स्थिति में आ गया हूँ।

श्रीभगवान् बोले- तुमने मेरा यह जो चतुर्भुज रूप देखा है, इसके दर्शन अत्यंत ही दुर्लभ हैं। देवता भी इस रूप को देखने के लिए सदा लालायित रहते हैं। इस चतुर्भुज रूप को न तो वेदों से, न तप से, न दान से और न यज्ञ से ही देखा जा सकता है। हे शत्रुतापन अर्जुन! मेरे इस चतुर्भुज रूप को तो केवल अनन्य भक्ति से ही तत्त्व से जाना जा सकता है, साकार रूप से देखा जा सकता है तथा प्राप्त किया जा सकता है। हे पाण्डव! जो केवल मेरी प्रसन्नता के लिए सब कर्म करता है, मेरी ही आश्रित रहता है, मेरा ही प्रेमी भक्त है, सर्वथा आसक्तिरहित है तथा किसी भी प्राणी के साथ वैर नहीं रखता, वह भक्त मुझे ही प्राप्त हो जाता है।

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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

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