सहज गीता -रामसुखदास पृ. 62

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

Prev.png

ग्यारहवाँ अध्याय

(विश्वरुपदर्शन योग)

अर्जुन बोले- (भगवान् के सौम्य देवरूप का दर्शन और वर्णन-) हे देव! मैं आपके शरीर में संपूर्ण देवताओं को, प्राणियों के विशेष-विशेष समुदायों को, कमलासन पर बैठे हुए ब्रह्मा जी को, कैलास पर बैठे शंकर जी को, संपूर्ण ऋषियों को और पाताल लोक में रहने वाले दिव्य सर्पों को भी देख रहा हूँ। हे विश्वरूप! हे विश्वेश्वर! मैं आपको अनेक हाथों, पेटों, मुखों और नेत्रों वाला तथा सब तरफ से अनन्त रूपों वाला देख रहा हूँ। मुझे आपका न तो आदि, न मध्य और न अंत ही दिखायी दे रहा है। मैं आपको सिर पर मुकुट और हाथों में गदा, चक्र, शंख तथा पद्म धारण किये हुए देख रहा हूँ। इसके सिवाय मैं आपको अनन्त तेजवाला, सब तरफ प्रकाश करने वाले, देदीप्यमान अग्नि तथा सूर्य के समान कान्तिवाले, नेत्रों के द्वारा कठिनता से देखे जाने योग्य और सब तरफ से अप्रमेय (अपरिमित) देख रहा हूँ। आप ही जानने योग्य परम अक्षर ब्रह्म (निर्गुण-निराकार) हैं, आप ही संपूर्ण संसार के परम आधार (सगुण-निराकार) हैं, आप ही सनातन धर्म के रक्षक (सगुण-साकार) हैं, और आप ही अविनाशी सनातन पुरुष हैं- ऐसा मैं मानता हूँ।
(भगवान् के उग्र रूप का दर्शन और वर्णन)- मैं आपको आदि, मध्य तथा अंत से रहित, अनन्त प्रभावशाली, अनन्त भुजाओं वाले, चंद्र तथा सूर्यरूप नेत्रों वाले, प्रज्वलित अग्निरूप मुखों वाले और अपने तेज से संपूर्ण संसार को तपाने वाले देख रहा हूँ। हे महात्मन्! स्वर्ग तथा पृथ्वी के बीच का अन्तराल और दसों दिशाएँ एक आपसे ही परिपूर्ण हैं। आपके इस अद्भुत उग्ररूप को देखकर तीनों लोक भयभीत हो रहे हैं। जब मैं स्वर्ग में गया था, उस समय मैंने जिन देवताओं को देखा था, वे ही सब देवतालोग आपके स्वरूप में प्रविष्ट होते हुए दीख रहे हैं। उनमें से कई तो भयभीत हो कर हाथ जोड़े हुए आपका गुणगान कर रहे हैं। महर्षियों और सिद्धों के समुदाय 'कल्याण हो! मंगल हो!' ऐसा कहकर उत्तम-उत्तम स्तोत्रों के द्वारा आपकी स्तुति कर रहे हैं। जो ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, आठ वसु, बारह साध्यगण, दस विश्वेदेव, दो अश्विनी कुमार, उनचास मरुद्गण और सात पितर तथा गंधर्व, यज्ञ, असुर और सिद्धों के समुदाय हैं, वे सभी आश्चर्यचकित होकर आपको देख रहे हैं।

Next.png

संबंधित लेख

सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः