सहज गीता -स्वामी रामसुखदास
ग्यारहवाँ अध्याय(विश्वरुपदर्शन योग)अर्जुन बोले- (भगवान् के सौम्य देवरूप का दर्शन और वर्णन-) हे देव! मैं आपके शरीर में संपूर्ण देवताओं को, प्राणियों के विशेष-विशेष समुदायों को, कमलासन पर बैठे हुए ब्रह्मा जी को, कैलास पर बैठे शंकर जी को, संपूर्ण ऋषियों को और पाताल लोक में रहने वाले दिव्य सर्पों को भी देख रहा हूँ। हे विश्वरूप! हे विश्वेश्वर! मैं आपको अनेक हाथों, पेटों, मुखों और नेत्रों वाला तथा सब तरफ से अनन्त रूपों वाला देख रहा हूँ। मुझे आपका न तो आदि, न मध्य और न अंत ही दिखायी दे रहा है। मैं आपको सिर पर मुकुट और हाथों में गदा, चक्र, शंख तथा पद्म धारण किये हुए देख रहा हूँ। इसके सिवाय मैं आपको अनन्त तेजवाला, सब तरफ प्रकाश करने वाले, देदीप्यमान अग्नि तथा सूर्य के समान कान्तिवाले, नेत्रों के द्वारा कठिनता से देखे जाने योग्य और सब तरफ से अप्रमेय (अपरिमित) देख रहा हूँ। आप ही जानने योग्य परम अक्षर ब्रह्म (निर्गुण-निराकार) हैं, आप ही संपूर्ण संसार के परम आधार (सगुण-निराकार) हैं, आप ही सनातन धर्म के रक्षक (सगुण-साकार) हैं, और आप ही अविनाशी सनातन पुरुष हैं- ऐसा मैं मानता हूँ। |
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