सहज गीता -स्वामी रामसुखदास
दसवाँ अध्याय(विभूति योग)[भगवान् ने यहाँ अपनी बयासी विभूतियों का वर्णन किया है। इन सब विभूतियों में जो भी विशेषता, विलक्षणता, महत्ता, मुख्यता दीखती है, वह इनकी व्यक्तिगत नहीं है, प्रत्युत भगवान् की ही है और भगवान् से ही आयी है। अतः संसार में जहाँ-जहाँ विशेषता दिखायी दे, वहाँ-वहाँ वस्तु, व्यक्ति आदि की विशेषता न देखकर भगवान् की ही विशेषता देखनी चाहिए और भगवान् की ही तरफ वृत्ति जानी चाहिए। वास्तव में विभूति-वर्णन का तात्पर्य संसार की सत्ता, महत्ता तथा प्रियता को हटाकर मनुष्य को 'वासुदेवः सर्वम्' का अनुभव कराना है, जो गीता का खास ध्येय है।] |
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