सहज गीता -स्वामी रामसुखदास
आठवाँ अध्याय(अक्षर ब्रह्म योग)हे पार्थ! (उपर्युक्त प्रकार से निर्गुण-निराकार को प्राप्त करना सबके लिए बहुत कठिन है, पर मेरी अर्थात् ‘सगुण-साकार’ की प्राप्ति बहुत सुगम है।) जिसका मन मुझे छोड़कर कहीं नहीं जाता तथा जो नित्य-निरन्तर (अभी से लेकर मृत्यु तक और नींद खुलने से लेकर गाढ़ नींद आने तक) मेरा स्मरण करता है, उस नित्य-निरंतर मुझमें लगे हुए योगी को मैं सुलभता से प्राप्त हो जाता हूँ। परम प्रेम से युक्त होकर मुझे प्राप्त करने के बाद महात्मालोग इस दु:खों के घर तथा निरंतर परिवर्तनशील संसार में पुनः लौटकर नहीं आते। हे अर्जुन! पृथ्वी से लेकर ब्रह्मलोक तक जितने भी लोक हैं, वहाँ जाने पर जीव को पुनः लौटकर संसार में आना पड़ता है; परंतु हे कौन्तेय! मुझे प्राप्त होने पर जीव को पुनः लौटकर संसार में नहीं आना पड़ता। |
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अध्याय | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
- ↑ सत्ययुग 17 लाख 28 हजार वर्षों का, त्रेतायुग 12 लाख 16 हजार वर्षों का, द्वापर युग 8 लाख 64 हजार वर्षों का और कलियुग 4 लाख 32 हजार वर्षों का होता है। इस प्रकार 43 लाख 20 हजार वर्षों की एक ‘चतुर्युगी’ होती है। ऐसी एक हजार चतुर्युगी अर्थात् 4 अरब 32 करोड़ वर्षों का ब्रह्मा का एक दिन तथा इतने ही वर्षों की एक रात होती है। ब्रह्मा के इसी दिन को ‘कल्प’ (सर्ग) और रात को ‘प्रलय’ कहते हैं। ऐसे सौ वर्ष बीतने पर (महाप्रलय में) ब्रह्मा भी लीन हो जाते हैं।
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