सहज गीता -स्वामी रामसुखदास
चौथा अध्याय(ज्ञान कर्म संन्यास योग)जिसकी इन्द्रियाँ पूरी तरह वश में हैं और जो अपने साधन मे तत्परतापूर्वक लगा हुआ है, ऐसे श्रद्धावान् मनुष्य को ही ज्ञान प्राप्त होता है। श्रद्धा में कमी होने से ही ज्ञान होने में देरी लगती है। ज्ञान प्राप्त होने पर तत्काल परम शान्ति की प्राप्ति हो जाती है। परंतु जो विवेकहीन और श्रद्धारहित है अर्थात् जो न तो खुद जानता है और न दूसरे की बात ही मानता है, ऐसे संशयात्मा मनुष्य का पारमार्थिक मार्ग से पतन हो जाता है। उसका न तो इस लोक में भला होता है, न परलोक में ही भला होता है और न उसके मन में सुख शान्ति ही रहती है।
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