सहज गीता -स्वामी रामसुखदास
तीसरा अध्याय(कर्म योग)श्री भगवान् बोले- सांसारिक पदार्थों के संग्रह और सुखभोग की कामना ही मनुष्य को पाप में लगाती है। यह कामना रजोगुण से उत्पन्न होती है। कामना में बाधा लग जाय तो क्रोध उत्पन्न हो जाता है। कितने ही पदार्थ मिल जायँ, पर इस कामना की कभी तृप्ति नहीं होती। यह कामना ही संपूर्ण पापों का कारण है। इसलिए इस कामना को अपना मित्र नहीं, अपितु शत्रु जानो। जैसे धुएँ से आग, मैल से दर्पण तथा जेर से गर्भ ढक जाता है, ऐसे ही कामना से मनुष्य का विवेक ढक जाता है। हे। कौन्तेय! जैसे आग में घी डालते रहने से आग कभी शान्त नहीं होती, अपितु बढ़ती ही रहती है, ऐसे ही भोग-पदार्थों के मिलने पर भी कामना कभी शान्त नहीं होती, अपितु ज्यों का त्यों धन आदि पदार्थ मिलते हैं, त्यों-त्यों उनकी कामना बढ़ती रहती है। इसलिए विवेक को ढकने वाली यह कामना साधकों के लिए सदा ही शत्रु के समान है। |
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