सहज गीता -स्वामी रामसुखदास
अठारहवाँ अध्याय(मोक्ष संन्यास योग)यदि तुम अहंकार के कारण मेरी बात नहीं मानोगे तो तुम्हारा पतन हो जाएगा। तुमने अहंकार का आश्रय लेकर 'मैं युद्ध नहीं करूँगा'- इस प्रकार युद्ध न करने का जो निश्चय किया है, वह झूठा है; क्योंकि तुम्हारा क्षात्र-स्वभाव तुम्हें जबर्दस्ती युद्ध में लगा देगा। हे कुन्तीनन्दन! अपने स्वाभाविक कर्म से बँधे हुए तुम मोह के कारण जिस युद्ध को नहीं करना चाहते, उसे भी तुम क्षात्र स्वभाव के परवश होकर करोगे।
हे अर्जुन! ईश्वर संपूर्ण प्राणियों के हृदय में रहता है। जो प्राणी शरीर को 'मैं' और 'मेरा' मानते हैं, उन संपूर्ण प्राणियों को वह ईश्वर अपनी मायाशक्ति से (उनके अच्छे या बुरे स्वभाव के अनुसार) संसार में घुमाता है। हे भारत! तुम सर्वभाव से (अपनी कोई कामना न रखकर) उस ईश्वर की ही शरण में चले जाओ। उसकी कृपा से तुम्हें परम शान्ति (संसार से सर्वथा उपरति) और अविनाशी परमपद- दोनं की प्राप्ति हो जायगी।
यह गोपनीय से गोपनीय शरणागति रूप ज्ञान मैंने तुमसे कहा है। अब तुम इस पर अच्छी तरह से विचार करके फिर जैसी इच्छा हो, वैसा करो।
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