सर्वरहित, एकाकी वन में -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

वंदना एवं प्रार्थना

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राग वागेश्री - तीन ताल


सर्वरहित, एकाकी वन में खड़ा कर रहा दीन पुकार।
‘दीनबन्धु! हे सुहृद-शिरोमणि! सर्वेश्वर! अनुपम दातार॥
मैं अति पतित, विषय-विष-जर्जर, सन्मार्गच्युत, अधम अपार।
आश्रयरहित, साधना-विरहित, हृदय अपरिमित पूर्ण विकार॥
कर दृढ़ निश्चय हो अनन्य, मैं चरण-शरण आया हूँ द्वार।
कर परिशुद्ध, बना लो अपना, विरद-विवश हे परम उदार!’

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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