सरन गए जो होइ सु होइ।
वे करता, वेई हैं हरता, अब न रहौ मुख गोइ।।
ब्रज अवतार कह्यौ है श्रीमुख, तेई करत विहार।
पूरन ब्रह्म सनातन वेई, मैं भुल्यौ संसार।।
उनके आगैं चाहौं पूजा, ज्यौं मनि दीप प्रकास।
रवि आगैं खद्योत उज्यारी, चंदन संग कुबाँस।।
कोटि इंद्र छिनहीं मैं राचैं, छिन मैं करैं बिनास।
सूर रच्यौ उनहीं कौ सुरपति, मैं भूल्यौ तिहिं आस।।974।।