समरान्गणमें सखा भक्त के अश्वों की कर पकड़ लगाम।
बने मार्गदर्शक लीलामय प्रेम-सुधोदधि, जग-सुखधाम॥
प्रेमी पार्थ-याज से सबको करुणा कर लोचन अभिराम।
शरणागति का मधुर मनोहर तव सुनाया सार्थ ललाम॥
‘मन्मना भव, भव मद्भक्त, मद्याजी, कर मुझे प्रणाम।
सत्य शपथयुत कहता हूँ प्रिय सखे! मुझीमें ले विश्राम॥
छोड़ सभी धर्मों को मेरी एक शरण हो जा निष्काम।
चिंता मत कर, सभी पाप से तुझे छुड़ा दूँगा प्रिय काम!’॥
श्रीहरि के सुखमय मंगलमय प्रण-वाक्यों की स्मृति कर दीन।
चित्त! सभी चंचलता तजकर चारु चरण में हो जा लीन॥
रसिकविहारी मुरलीधर, गीता-गायक के हो आधीन।
त्रिभुवन-मोहन के अतुलित सौंदर्याबुधि का बन जा मीन॥