सब तजि भजिऐ नंद कुमार।
और भजे तैं काम सरै नहिं, मिटै न भव-जंजार।
जिहिं जिहिं जोनि जन्म धारयौ, बहु जोरयौ अघ को भार।
तिहिं काटन कौं समरथ हरि कौ तीछन नाम-कुठार।
वेद, पुरान, भागवत, गीता, सब कौ यह मत सार।
भव-समुद्र हरि-पद-नौका बिनु कोउ न उतारै पार।
यह जिय जानि, इहीं छिन भजि, दिन बीते जात असार।
सूर पाइ यह समौ लाहु लहि, दुर्लभ फिरि संसार।।68।।