सबरी-आस्रम रघुवर आए -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग केदारौ
शबरी-उद्धार


 
सबरी-आस्रम रघुबर आए। अरधासन दै प्रभु बैठाए।
खाटे फल तजि मीठे ल्याई। जूँठे भए सो सहुज सुहाई।
अंतरजामी अति हित मानि। भोजन कीने, स्वाद बखानि।
जाति न काहू की प्रभु जानत। भक्ति-भाव हरि जुग-जुग मानत।
करि दंडवत मई वलिहारो। पुनि तन तजि हरि-लोक सिधारी।
सूरज प्रभु अति करुना भई। निज करि करि तिल-अंजलि दई॥67॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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