संत सूरदास का वात्सल्य प्रेम 7

संत सूरदास का वात्सल्य प्रेम


श्रीकृष्ण के खेल का बड़ा सुन्दर वर्णन सूर ने किया है। कभी खीझते हैं, कभी चैगान खेलते हैं, कभी भौंरा-चकडोरी से खेलते हैं। कभी खेल में एक-दूसरे को हारने पर दाँव देने का अवसर देना पड़ता है। इस तरह का एक बड़ा वात्सल्यभरा वर्णन खेल के प्रसंग में सूरदास ने किया है। श्रीकृष्ण खेल में हार जाते हैं। श्रीदामा जीत जाते हैं। श्रीकृष्ण दावँ देना नहीं चाहते, परंतु अन्ततः खेलना भी चाहते हैं तो दावँ देते हैं। इसका वर्णन सूर ने इस प्रकार किया है-

खेलत मैं को काकौ गुसैयाँ।
हरि हारे जीते श्रीदामा, बरबस हीं कत करत रिसैयाँ।।
जाति-पाँति हमतैं बड़ नाहीं, नाहीं बसत तुम्हारी छैयाँ।
अति अधिकार जनावत यातैं जातैं अधिक तुम्हारें गैयाँ।।
रूहठि करै तासौं को खेलै, रहे बैठि जहँ-तहँ सब ग्वैयाँ।
सूरदास प्रभु खेल्यौइ चाहत, दाउँ दियौ करि नंद-दुहैयाँ।।[1]

माखनचोरी और उलाहनेश्रीकृष्ण की बाललीलाओं में माखनचोरी बड़ी चर्चित रही है। सूरदास ने श्रीकृष्ण के माखन के अनुराग और माखन चुराने के अनेक प्रसंग गाये हैं। श्रीकृष्ण के साथ माखन चुराने वाले बालकों की पूरी टोली होती है। माखन खाना, माखन और दधि के भाजन फोड़ना, बंदरों को माखन खिलाना, दूध में पानी मिलाना, बछड़े गायों के नीचे दूध पीने को खोलकर छोड़ देना-इन सब बातों से गोपियाँ तंग आ जाती हैं। यशोदा के पास उलाहनें लेकर आती हैं। पुत्रप्रेम के कारण यशोदा यह स्वीकार नहीं करतीं। वे श्रीकृष्ण का पक्ष लेकर ग्वालिनों से लड़ती हैं-

मेरौ गोपाल तनक सौ, कहा करि जानै दधि की चोरी।
हाथ नचावत आवति ग्वारिनि, जीभ करै किन थोरी।[2]

कई बार दधि-माखन चुराते समय गोपियाँ श्रीकृष्ण को पकड़ भी लेती हैं तो वे तरह-तरह के बहाने बना देते हैं। जैसे मैं तो इस भाजन में चींटी निकाल रहा था या मैंने अपना घर समझा इस धोखे में आ गया। कई बार गोपियाँ पकड़कर भी ले आयीं। सूरदास ने ऐसे अनेक भावपूर्ण चित्र खींचे हैं। एक बार यशोदा ने स्वयं श्रीकृष्ण को माखन चुराते देख लिया। उनका मुख दधि से सना हुआ था। यशोदा ने हाथ में साँटी ले ली। उस समय श्रीकृष्ण अत्यन्त कातर होकर जो उत्तर देते हैं और यशोदा सब कुछ जानते हुए भी कि श्रीकृष्ण अपराधी हैं, वे तसात्सल्यरस की दुग्धधवल धारा में निमग्न हो जाती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सूरसागर 863
  2. सूरसागर 911

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