संजय द्वारा युधिष्ठिर के प्रधान सहायकों का वर्णन

महाभारत उद्योग पर्व में यानसंधि पर्व के अंतर्गत 50वें अध्याय में 'संजय द्वारा युधिष्ठिर के प्रधान सहायकों का वर्णन' का वर्णन है, जो इस प्रकार है [1]-

धृतराष्‍ट्र द्वारा संजय से युद्ध के विषय में पूछना

धृतराष्‍ट्र ने पूछा- संजय! हमारी प्रसन्‍नता और सहायता के लिये यहाँ हस्तिनापुर में बहुत-सी सेना एकत्र हो गयी है, यह समाचार सुनकर पाण्‍डवराज धर्मपुत्र युधिष्ठिर ने क्‍या कहा? सूत! भविष्‍य में होने वाले युद्ध के लिये उद्यत होकर राजा युधिष्ठिर कैसी तैयारी कर रहे हैं? उनके भाइयों और पुत्रों में से कौन-कौन-से लोग उनसे किसी कार्य के लिये आज्ञा पाने की इच्‍छा से उनका मुँह जोहते रहते हैं? युधिष्ठिर धर्म के ज्ञाता हैं और धर्म के आचरण में सदा तत्‍पर रहते हैं। मेरे मंदबुद्धि पुत्रों ने अपने कपटपूर्ण बर्ताव से उन्‍हें कुपित कर दिया है। वहाँ कौन-कौन ऐसे हैं, जो इन्‍हें बारंबार शांत रहने की सलाह देकर युद्ध से रोकते हैं? संजय ने कहा- महाराज! आपका कल्‍याण हो। पांचाल और पाण्‍डव सभी राजा युधिष्ठिर के मुख की ओर देखते रहते हैं और वे इन सबको विभिन्‍न कार्यों के लिये आज्ञा देते हैं। जब कुंतीपुत्र युधिष्ठिर सामने आते हैं, तब पाण्‍डवों तथा पांचालों के रथ समूह पृथक-पृथक श्रेणियों में खड़े होकर उनका अभिनंदन करते हैं। जैसे आकाश उदयकाल में उद्दीप्‍त तेजस्‍वी सूर्यदेव का अभिनंदन करता है, उसी प्रकार, मानो तेज के पुंज का उदय होता हो, इस तरह दिखायी देने वाले कुंतीनंदन युधिष्ठिर का समस्‍त पांचालगण अभिनंदन करते हैं। ग्‍वालिये और गड़रियों से लेकर पांचाल, केकय और मत्‍स्‍यदेशों के राजवंश तक सभी लोग पाण्‍डुपुत्र यधिष्ठिर सम्‍मान करते हैं। ब्राह्मणों, क्षत्रियों तथा वैश्‍यों की कन्‍याएं भी खेलती-खेलती युद्ध के लिये सुसज्जित युधिष्ठिर को देखने के लिये उनके पास आ जाती हैं।

धृतराष्‍ट्र ने पूछा- संजय! बताओ, पाण्‍डव लोग धृष्‍टद्युम्‍न की सेना तथा अन्‍यान्‍य सोमकवंशियों की विशाल वाहिनी के सिवा और किस-किस की सहायता पाकर हम लोगों के साथ युद्ध करने को उद्यत हुए हैं? वैशम्‍पायनजी कहते हैं- जनमेजय! कौरवों की सभा में राजा धृतराष्‍ट्र के इस प्रकार पूछने पर संजय बांरबार लम्‍बी सांस खीचते हुए दीर्घकाल तक गहरी चिंता में निमग्‍न से हो गये और सहसा बिना किसी विशेष कारण के ही वे मूर्च्छित होकर गिर पड़े। तब विदुरजी ने उस राजसभा में धृतराष्‍ट्र से कहा-‘महाराज! ये संजय मूर्च्छित होकर धरती पर गिर पड़े हैं। उनकी बुद्धि और चेतना लुप्‍त-सी हो रही है, अत: अभी कुछ बोल नहीं सकते’। धृतराष्‍ट्र बोले- निश्चय ही संजय ने महारथी कुंतीपुत्रों को देखा है। जान पड़ता है, उन पुरुषसिंह पाण्‍डवों ने इसके मन को अत्‍यंत उद्विग्‍न कर दिया है।

संजय द्वारा धृतराष्‍ट्र को युधिष्ठिर के प्रधान सहायकों का वर्णन करना

वैशम्‍पायनजी कहते हैं- जनमेजय! इतने में ही संजय को चेत हो आया और वे आश्‍वस्‍त होकर कौरव-सभा में धृतराष्‍ट्र से बोले। संजय ने कहा- राजेन्‍द्र! मैंने महारथी कुंतीपुत्रो का दर्शन किया है। वे अज्ञातवास के समय मत्‍स्‍यनरेश विराट के घर में छिपकर रहने के कारण अत्‍यंत दुबले हो गये हैं। महाराज! पाण्‍डवों ने जिन लोगों की सहायता पाकर युद्ध के लिये तैयारी की है, उनका परिचय देता हूँ, सुनिये। पहली बात यह है कि उन्‍हें वीरवर धृष्‍टद्युम्‍न का पूर्ण सहयोग प्राप्‍त हुआ है, जिससे सबल होकर उन पाण्‍डवों ने आप लोगों पर चढ़ाई करने की तैयारी की है।[1] महाराज! जो धर्मात्‍मा न रोष से, न भय से, न लोभ से, न अर्थ के लिये और न बहाना बनाकर ही कभी सत्य का परित्‍याग कर सकते हैं, जो धर्मात्‍माओं में श्रेष्‍ठ हैं और धर्म के विषय में प्रमाण माने जाते हैं, उन अजातशत्रु के प्रभाव से पाण्‍डवों ने युद्ध की तैयारी की है।

बाहुबल में जिनकी समानता करने वाला इस भूमण्‍डल में दूसरा कोई नहीं है, जिन्‍होंने केवल धनुष करके युद्ध में काशी, अंग, मगध और कलिंग आदि देशों के समस्‍त भूपालों को जीतकर अपने वश में कर लिया था, उन भीमसेन के बल से पाण्‍डवों ने आप लोगों पर आक्रमण करने का उद्योग आरम्‍भ किया है। जिनके बल और पराक्रम से चारों पाण्‍डव सहसा लाक्षा-भवन से निकलकर इस पृथ्वी पर जीवित बच गये, जिन्‍होंने मनुष्‍य भक्षी राक्षस हिडिम्ब से अपने भाइयों की रक्षा की, उस संकट के समय जो कुंतीकुमार भीम इन पाण्‍डवों के लिये द्वीप के समान आश्रयदाता हो गये, जब सिंधुराज जयद्रथ ने द्रौपदी का अपहरण किया था, उस समय भी जिन कुंतीकुमार वृकोदर ने उन सबको द्वीप की भाँति आश्रय दिया था तथा जिन्‍होंने वारणावत नगर में एकत्र हुए समस्‍त पाण्‍डवों को लाक्षागृह की आग में जलने से बचा लिया था, उन्‍हीं भीमसेन के बल से पाण्‍डवों ने आप लोगों के साथ युद्ध की तैयारी की है। जिन्‍होने द्रौपदी पर अपना प्रेम जताते हुए अत्‍यंत दुर्गम एवं भयंकर गन्‍धमादन पर्वत की भूमि में प्रवेश करके क्रोधवश नाम वाले राक्षसों को मार डाला, जिनकी दोनों भुजाओं में दस हजार हाथियों के समान बल है, उन्‍हीं भीमसेन के बल से पाण्‍डवों ने आप लोगों पर आक्रमण का उद्योग किया है।

जिन वीर शिरोमणि ने पहले केवल भगवान श्रीकृष्‍ण के साथ जाकर अग्निदेव की तृप्ति के लिये पराक्रम करके अपने साथ युद्ध करने वाले देवराज इन्‍द्र को भी पराजित कर दिया, जिन्‍होंने युद्ध के द्वारा पर्वत पर शयन करने वाले तथा हाथों में त्रिशूल लिये रहने वाले साक्षात देवाधिदेव महादेव उमापति को भी संतुष्‍ट किया था तथा जिन धनुर्धर वीर ने समस्त लोकपालों को भी हराकर अपने वश में कर लिया, उन्हीं अर्जुन के बल पर पाण्‍डव लोग युद्ध में आप लोगों से भिड़ने को तैयार हैं।

कुरुनन्दन! जिन्होंने सहस्रों म्लेच्छों से भरी हुई पश्चिम दिशा को जीतकर अपने अधीन कर लिया था, वे विचित्र रीति से युद्ध करने में कुशल योद्धा नकुल उधर से युद्ध के लिये तैयार खडे़ हैं। माद्रीकुमार नकुल महान धनुर्धर और अत्यन्त दर्शनीय वीर हैं। उनके बल से पाण्‍डवों ने आप लोगों पर आक्रमण की तैयारी की है। जिन्होंने युद्ध में काशी, अंग, मगध तथा कलिंगदेश के राजाओं को पराजित किया हैं, उन वीरवर सहदेव के बल से पाण्‍डव आप लोगों से भिड़ने के लिये तैयार हुए हैं। राजन! इस भूमण्‍डल में अश्वत्थामा, धृष्‍टकेतु, रुक्मी तथा प्रद्युम्न ये चार पुरुष ही बल और पराक्रम में जिनकी समानता कर सकते हैं, जो माद्री को आनन्द प्रदान करने वाले तथा पाण्‍डवों में सबसे छोटे हैं, उन नरश्रेष्‍ठ वीर सहदेव के साथ आप लोगों का महान विनाशकारी युद्ध होने वाला है।[2]

भरतश्रेष्‍ठ! पूर्वकाल में काशिराज की जिस सती-साघ्‍वी कन्या अम्बा ने भीष्‍मजी के वध की इच्छा से घोर तपस्या की थी, वही मृत्यु के पश्चात पांचालराज द्रुपद की पुत्री होकर उत्पन्न हुई, परंतु दैववश वह फिर पुरुष हो गयी। वह वीर पांचाल कुमार स्त्री और पुरुष दोनों शरीरों के गुण और अवगुण को जानता है। कौरवो! वह द्रुपद कुमार युद्ध में उन्‍मत्त होकर लड़ने वाला है। उसी ने कलिंग देशीय क्षत्रियों को पराजित किया था। उस अस्‍त्रवेत्ता वीर का नाम शिखण्‍डी है, जिसके बल पर पाण्‍डवों ने आप लोगों से युद्ध की तैयारी की है। जिसे स्‍थूणाकर्ण यक्ष ने पुरुष बना दिया था, भीष्‍म के वध की इच्‍छा रखने वाले उस भयंकर एवं महाधनुर्धर शिखण्‍डी के बल पर पाण्‍डव आप से युद्ध करने को तैयार हैं। के‍कयदेश के पांच राजकुमार जो परस्‍पर भाई हैं, सदा कवच बांधे युद्ध के लिये उद्यत रह‍ते हैं। वे महान धनुर्धर शूरवीर हैं। उनके बल पर पाण्‍डवों ने आप लोगों से युद्ध की तैयारी की है। जिनकी बड़ी-बड़ी भुजाएं हैं, जो बड़ी शीघ्रता से अस्‍त्र-संचालन करते हैं तथा जो धीर एवं सत्‍यपराक्रमी हैं, उन वृष्णिवीर सात्‍यकि के साथ आप लोगों का संग्राम होने वाला है। जो अज्ञातवास के समय महात्‍मा पाण्‍डवों के आश्रयदाता थे, उन राजा विराट के साथ भी आप लोगों का युद्ध होगा। कशि देश के अधिपति महारथी नरेश जो वाराणसी पुरी में रहते हैं, पाण्‍डवों की ओर से युद्ध करने को तैयार हैं। उनको साथ लेकर पाण्‍डव आप लोगों पर आक्रमण करने के लिये तैयार हैं।

द्रौपदी के महामना पुत्र देखने में बालक होने पर भी समर-भूमि में दुर्जय हैं। उन्‍हें छेड़ना विषधर सर्पों को छू लेने के समान है। उनके बलपर भी पाण्‍डव आप लोगों से भिड़ने की तैयारी कर रहे हैं। जो पराक्रम में भगवान श्रीकृष्‍ण के समान और इन्द्रिय संयम में युधिष्ठिर के तुल्‍य हैं, उन अभिमन्‍यु को साथ लेकर पाण्‍डवों ने आप लोगों से युद्ध की तैयारी की है। जिसके पराक्रम की कहीं तुलना नहीं है, शिशुपाल का वह महारथी पुत्र महायशस्‍वी धृष्‍टकेतु समर भूमि में कुपित होने पर शत्रुओं के लिये दु:सह हो उठता है। उस चेदिराज के साथ पाण्‍डव लोग आप पर आक्रमण करने की तैयारी कर रहे हैं। उसने एक अक्षौहिणी सेना के साथ आकर पाण्‍डवों का पक्ष ग्रहण किया है। जैसे इन्‍द्र देवताओं के आश्रयदाता हैं, उसी प्रकार जो पाण्‍डवों को शरण देने वाले हैं, उन भगवान वासुदेव के साथ पाण्‍डवों ने आप पर आक्रमण करने की तैयारी की है। भरतश्रेष्‍ठ! चेदिराज के भाई शरभ अपने अनुज करकर्ष के साथ पाण्‍डवों की सहायता के लिये आये हैं। उन दोनों को साथ लेकर उन्‍होंने आपसे युद्ध करने का उद्योग किया है। जरासंधपुत्र सहदेव और जयत्सेन दोनों युद्ध में अपना सानी नहीं रखते हैं। वे दोनों मागध वीर पाण्‍डवों की सहायता के लिये आकर डटे हुए हैं। महातेजस्‍वी राजा द्रुपद विशाल सेना के साथ आये हैं और पाण्‍डवों के लिये अपने शरीर और प्राणों की परवा न करके युद्ध करने के लिये उद्यत हैं। ये तथा और भी बहुत से पूर्व तथा उत्तर दिशाओं में रहने वाले नरेश सैकड़ों की संख्‍या में आकर वहाँ डटे हुए हैं, जिनका आश्रय लेकर महाराज युधिष्ठिर युद्ध के लिये तैयार हैं।[3]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 50 श्लोक 1-16
  2. महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 50 श्लोक 17-33
  3. महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 50 श्लोक 34-50

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सेनोद्योग पर्व
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संजययान पर्व
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प्रजागर पर्व
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भगवद्यान पर्व
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सैन्यनिर्याणपर्व
पांडवपक्ष के सेनापति का चुनाव | पांडव सेना का कुरुक्षेत्र में प्रवेश | कुरुक्षेत्र में पांडव सेना का पड़ाव तथा शिविर निर्माण | दुर्योधन द्वारा सेना को सुसज्जित होने और शिविर निर्माण का आदेश | कृष्ण का युधिष्ठिर से युद्ध को ही कर्तव्य बताना | युधिष्ठिर का संताप और अर्जुन द्वारा कृष्ण के वचनों का समर्थन | दुर्योधन द्वारा सेनाओं का विभाजन और सेनापतियों का अभिषेक | दुर्योधन द्वारा भीष्म का सेनापति पद पर अभिषेक | युधिष्ठिर द्वारा अपने सेनापतियों का अभिषेक | बलराम का पांडव शिविर में आगमन और तीर्थयात्रा के लिए प्रस्थान | रुक्मी का सहायता हेतु पांडवों और कौरवों के पास आगमन | धृतराष्ट्र और संजय का संवाद

उलूकदूतागमनपर्व
दुर्योधन का उलूक को दूत बनाकर पांडवों के पास भेजना | पांडव शिविर में उलूक द्वारा दुर्योधन का संदेश सुनाना | पांडवों की ओर से दुर्योधन को उसके संदेश का उत्तर | पंडवों का संदेश लेकर उलूक का लौटना | धृष्टद्युम्न द्वारा योद्धाओं की नियुक्ति

रथातिरथसंख्यानपर्व
भीष्म द्वारा कौरव पक्ष के रथियों और अतिरथियों का परिचय | कौरव पक्ष के रथियों का परिचय | कौरव पक्ष के रथी, महारथी और अतिरथियों का वर्णन | कर्ण और भीष्म का रोषपूर्वक संवाद | भीष्म द्वारा पांडव पक्ष के रथी और उनकी महिमा का वर्णन | पांडव पक्ष के महारथियों का वर्णन तथा विराट और द्रुपद की प्रशंसा | पांडव पक्ष के रथी, महारथी एवं अतिरथी आदि का वर्णन | भीष्म का शिखण्डी और पांडवों का वध न करने का कथन

अम्बोपाख्यानपर्व
भीष्म द्वारा काशीराज की कन्याओं का अपहरण | अम्बा का भीष्म से शाल्वराज के प्रति अनुराग प्रकट करना | अम्बा का शाल्व द्वारा परित्याग | अम्बा और शैखावत्य संवाद | होत्रवाहन तथा अकृतव्रण का आगमन और उनका अम्बा से वार्तालाप | अकृतव्रण और परशुराम का अम्बा से वार्तालाप | अम्बा और परशुराम का संवाद तथा अकृतव्रण की सलाह | परशुराम और भीष्म का रोषपूर्ण वार्तालाप | परशुराम और भीष्म का युद्ध हेतु कुरुक्षेत्र में उतरना | परशुराम के साथ भीष्म द्वारा युद्ध प्रारम्भ करना | परशुराम और भीष्म का घोर युद्ध | भीष्म और परशुराम का युद्ध | भीष्म को प्रस्वापनास्त्र की प्राप्ति | भीष्म तथा परशुराम द्वारा शक्ति और ब्रह्मास्त्र का प्रयोग | भीष्म और परशुराम के युद्ध की समाप्ति | अम्बा की कठोर तपस्या | अम्बा को महादेव से वरप्राप्ति तथा उसका चिता में प्रवेश | अम्बा का द्रुपद का यहाँ जन्म और शिखण्डी नामकरण | शिखण्डी का विवाह और दशार्णराज का कोप | हिरण्यवर्मा के आक्रमण से द्रुपद का घबराना | द्रुपद द्वारा नगररक्षा की व्यवस्था और देवाराधन | शिखण्डिनी का वनगमन और स्थूणाकर्ण यक्ष से प्रार्थना | शिखण्डी को पुरुषत्व की प्राप्ति | स्थूणाकर्ण को कुबेर का शाप | भीष्म का शिखण्डी को न मारने का निश्चय | भीष्म आदि द्वारा अपनी-अपनी शक्ति का वर्णन | अर्जुन द्वारा अपने सहायकों और युधिष्ठिर की शक्ति का परिचय देना | कौरव सेना का रण के लिए प्रस्थान | पांडव सेना का युद्ध के लिए प्रस्थान

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